‘वंदे मातरम्’ के रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की आज 128वीं पु्ण्यतिथि, वकालत की डिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय व्यक्ति बने थे बंकिमचंद्र
नई दिल्ली| भारत के राष्ट्रीय गीत बंदे मातरम् के रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की आज 128वीं पु्ण्यतिथि है। उनका देहांत 8 अप्रैल, 1894 को हुआ था। बंकिमचंद्र ने अपने उपन्यासों के माध्यम से देशवासियों में ब्रिटिश गवर्नमेंट के विरुद्ध विद्रोह की चेतना का निर्माण करने में अहम् योगदान दिया था। तो चलिए जानते है उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।।
– बंकिमचंद्र जी का जन्म 27 जून 1838 को बंगाल के उत्तरी चौबीस परगना के कंथलपाड़ा में एक बंगाली परिवार के बीच हुआ। वह बंगला के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बने। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनकी अन्यतम जगह है।
– बंकिमचंद्र की शिक्षा हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में हुई। वर्ष 1857 में उन्होंने BA पास किया और 1869 में कानून की डिग्री प्राप्त की। प्रेसीडेंसी कॉलेज से BA की उपाधि लेने वाले ये प्रथम भारतीय थे। जिसके उपरांत उन्होंने गवर्नमेंट नौकरी की और 1891 में सरकारी सेवा से रिटायर हुए। उनका देहांत अप्रैल 1894 में हुआ। शिक्षा समाप्ति के तुरंत बाद डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर इनकी नियुक्ति हो गई। कुछ काल तक बंगाल सरकार के सचिव पद पर भी रहे। रायबहादुर और सी। आई। ई। की उपाधियां पाईं।
देश के लिए राष्ट्रगीत: बंकिमचंद्र ने अपने लेखन के करियर की शुरुआत अंग्रेजी उपन्यास से की थी, लेकिन बाद में उन्होंने हिंदी में लिखना शुरू किया। देश के लिए राष्ट्रगीत और अन्य रचनाएं आज भी याद की जाती है।
ऐसे हुई राष्ट्रीय गीत की रचना: हम बता दें कि बंकिमचंद्र ने जब इस गीत की रचना की तब भारत पर ब्रिटिश शासकों का दबदबा था। ब्रिटेन का एक गीत था ‘गॉड! सेव द क्वीन’। भारत के हर समारोह में इस गीत को अनिवार्य किया जा चुका है। बंकिमचंद्र तब गवर्नमेंट नौकरी में थे। अंग्रेजों के बर्ताव से बंकिम को बहुत बुरा लगा और उन्होंने वर्ष 1876 में एक गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया ‘वन्दे मातरम्’।