December 24, 2024

लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में बातचीत ही वह सर्वश्रेष्‍ठ माध्‍यम है जो विचार-विमर्श को विवाद में परिणत नहीं होने देता: राष्‍ट्रपति कोविंद

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लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में बातचीत ही वह सर्वश्रेष्‍ठ माध्‍यम है जो विचार-विमर्श को विवाद में परिणत नहीं होने देता: राष्‍ट्रपति कोविंद

नई दिल्ली : राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुजरात के केवडिया में पीठासीन अधिकारियों के 80वें अखिल भारतीय सम्‍मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में बातचीत का माध्‍यम ही वह सर्वश्रेष्‍ठ माध्‍यम है जो विचार-विमर्श को विवाद में परिणत नहीं होने देता।

राष्‍ट्रपति ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में सत्तारूढ़ दल के साथ-साथ विपक्ष की भी बहुत महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है इसलिए इन दोनों के बीच सामंजस्‍य, सहयोग और सार्थक विचार-विमर्श बहुत जरूरी है। पीठासीन अधिकारियों की यह जिम्‍मेदारी है कि वे सदन में जन प्रतिनिधियों को स्‍वस्‍थ बहस के लिए अनुकूल माहौल प्रदान करें और सभ्‍य व्‍यवहार तथा विचार-विमर्श को प्रोत्‍साहित करें।

राष्‍ट्रपति ने कहा कि निष्‍पक्षता और न्‍याय हमारी संसदीय लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था का आधार है। सदन में अध्‍यक्ष का आसन-गरिमा और कर्तव्‍य पालन का पर्याय है। इसके लिए पूरी ईमानदारी और न्‍याय की भावना होना जरूरी है। यह निष्‍पक्षता, न्‍यायपरायणता और सद्व्‍यवहार का भी प्रतीक है और पीठासीन अधिकारियों से यह आशा की जाती है कि वे अपने कर्तव्‍य पालन में इन आदर्शों का ध्‍यान रखेंगे। राष्‍ट्रपति ने कहा कि लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था लोगों के कल्‍याण के लिए सबसे प्रभावी व्‍यवस्‍था साबित हुई है। अत: संसद और विधानसभा का सदस्‍य होना बहुत गर्व की बात है।

उन्‍होंने कहा कि लोगों की बेहतरी और देश की प्रगति के लिए सदस्‍यों और पीठासीन अधिकारियों को एक-दूसरे की गरिमा का ध्‍यान रखना चाहिए। पीठासीन अधिकारी का पद एक सम्‍मानित पद है, संसद सदस्‍यों और विधानसभा के सदस्‍यों को खुद अपने लिए और संसदीय लोकतंत्र के लिए सम्‍मान अर्जित करना होता है।

राष्‍ट्रपति ने कहा कि संसद और विधानसभाएं हमारी संसदीय व्‍यवस्‍था के मुख्‍य अंग हैं। उन पर देशवासियों के बेहतर भविष्‍य के लिए काम करने की महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी होती है। पिछले कुछ दशकों में आम जनता की आकांक्षाओं, इच्‍छाओं और जागरूकता में वृद्धि हुई है इ‍सलिए संसद और विधानसभाओं की भूमिका और जिम्‍मेदारियों पर पहले से ज्‍यादा ध्‍यान दिया जाने लगा है। जन प्रतिनिधियों से यह उम्‍मीद की जाती है कि वे लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति पूरी तरह ईमानदारी बरतें। लोकतांत्रिक संस्‍थाओं और जन प्रतिनिधियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप आचरण करना है।

राष्‍ट्रपति ने इस बात पर प्रसन्‍नता जताई कि इस वर्ष के सम्‍मेलन का मुख्‍य विषय ‘कार्यकारिणी, विधायिका और न्‍यायपालिका के बीच सद्भावपूर्ण सामंजस्‍य – एक जीवंत लोकतंत्र के लिए अनिवार्य’ है। उन्‍होंने कहा कि राज्‍य के तीनों स्‍तम्‍भों – कार्यकारिणी, विधायिका और न्‍यायपालिका – पूरे सामंजस्‍य के साथ काम कर रहे हैं और इस परंपरा की जड़ें भारत में बहुत गहरी हैं। उन्‍होंने विश्‍वास जताया कि इस सम्‍मेलन के दौरान होने वाले विचार-विमर्श से प्राप्‍त निष्‍कर्षों को आत्‍मसात करने से हमारी लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था और मजबूत होगी।

राष्‍ट्रपति ने कहा कि लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था, जन कल्‍याण, खासतौर से समाज के गरीब, पिछड़े और वंचित तबकों के उत्‍थान और देश की प्रगति के श्रेष्‍ठ लक्ष्‍य से परिचालित होती है। उन्‍होंने विश्‍वास व्‍यक्‍त किया कि सरकार के तीनों मुख्‍य अंग इस लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए साथ मिलकर काम करते रहेंगे।

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