नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस की जीत से मुख्यमंत्री बघेल मजबूत, भाजपा की बढ़ी मुश्किलें
छत्तीसगढ़ में 15 नगरीय निकायों में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के शानदार प्रदर्शन से बीजेपी को तो झटका लगा ही है, कांग्रेस की अंदरूनी कलह पर भी ब्रेक लगने के आसार दिख रहे हैं।
रायपुर। छत्तीसगढ़ में 15 नगरीय निकायों में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के शानदार प्रदर्शन से बीजेपी को तो झटका लगा ही है, कांग्रेस की अंदरूनी कलह पर भी ब्रेक लगने के आसार दिख रहे हैं। ढाई साल के सीएम के कथित फॉर्मूले को लेकर मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोक रहे प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं क्योंकि कांग्रेस आलाकमान से करीबियां बढ़ाने के बाद नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस की जीत से भूपेश बघेल को चुनौती देना अब आसान नहीं होगा।
करीब चार महीने पहले कांग्रेस की अंदरूनी कलह अपने चरम पर थी। सितंबर महीने में सीएम बघेल की कुर्सी खतरे में दिख रही थी। सीएम पद के लिए ढाई साल के कथित फॉर्मूले को लेकर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव लगातार पार्टी नेतृत्व पर दबाव बना रहे थे। आलाकमान के सामने शक्ति प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया था और प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना जोर पकड़ रही थी। नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद बघेल की कुर्सी को खतरे की सभी तात्कालिक संभावनाएं खत्म हो गई हैं। साथ ही, यह कयास भी लगने लगे हैं कि सिंहदेव का अगला कदम अब क्या होगा।
भाजपा अब होगी ज्यादा आक्रामक
राज्य में लगातार 15 साल तक सत्ता में रही भाजपा के लिए नगरीय निकाय चुनावों के नतीजे जोरदार झटके से कम नहीं हैं। 2018 में सत्ता में आने के बाद से कांग्रेस विधानसभा की तीन सीटों पर हुए उपचुनावों में भी जीत हासिल कर चुकी है। नगरीय निकाय नतीजों के बाद भाजपा नेता भी मानने लगे हैं कि पार्टी को आत्ममंथन की जरूरत है। पार्टी अब कांग्रेस सरकार के खिलाफ ज्यादा आक्रामक रवैया अपनाने की रणनीति पर काम कर रही है। दूसरी ओर, कांग्रेस इसे अपनी सरकार के कार्यक्रमों और भूपेश बघेल के नेतृत्व की जीत बता रही है। बस्तर से लेकर सरगुजा तक लोगों ने पार्टी में विश्वास जताया है।
बढ़ा सीएम भूपेश का ग्राफ
नगरीय निकाय चुनावों के आए नतीजों में कांग्रेस को सभी छह नगर पंचायतों में जीत मिली है। पांच में से चार नगर पालिका और चार में से दो नगर निगमों में भी उसे पूर्ण बहुमत मिला है। जिन दो नगर निगमों में बहुमत नहीं मिला, वहां भी निर्दलीयों की मदद से उसे महापौर का पद मिलने की संभावना है। भूपेश बघेल पहले ही पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से अपनी नजदीकियां बढ़ाने की कोशिशों में लगे हैं और इसमें काफी हद तक सफल भी रहे हैं। भाजपा उन्हें चुनौती देने की हालत में नहीं दिख रही। बघेल की असली चिंता सिंहदेव को लेकर थी, लेकिन इस जीत के बाद उनका ग्राफ न केवल बढ़ा है, बल्कि वे बेफिक्र हो गए हैं।