विश्व सीजोफ्रेनिया दिवस, 1000 लोगो में से 3 भारतीय इससे प्रभावित
रायपुर| सिज़ोफ्रेनिया एक आम साईकेट्री डिसऑर्डर है जो लगभग 1000 में से 3 भारतीयों में देखने को मिलता है। इससे प्रभावित होने की दर पुरुषों में (15 से 18 वर्ष की आयु) से लेकर 20 से 30 वर्ष की आयु के मध्य की है, जो महिलाओं की तुलना में अधिक है क्योंकि वे महिलाओं में 20 से 30 वर्ष की आयु से लेकर 30 से 40 वर्ष तक की आयु में प्रभावित होतीं हैं।
यह मूल रूप से एक प्रकार का बहुघटकीय विकार है जिसमें अनुवांशिकी, मस्तिष्क में पाए जाने वाले रसायनों में असंतुलन, पर्यावरणीय घटक और फैमिली हिस्ट्री शामिल हैं। एन एच एम् एम् आई की मनोरोग विषेशज्ञ डॉ सुचिता गोयल ने जानकारी देते हुए कहा कि आमतौर पर इसके लक्षण हैलुसिनेशन (ऐसी चीज़ों को देखना, सुनना, छूना जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं है), डेलुज़न या भ्रम (स्थायी, सुदृढ़ और झूठी धारणाएं), असामान्य व्यवहार, नींद के चक्र में बाधाएं आदि में देखने को मिलते हैं। किसी किसी में ये भावनात्मक प्रतिक्रियाओं, स्पीच, लक्ष्य आधारित व्यवहार आदि में गिरवाट या कम होने होने में नज़र आता है।
धार्मिक आस्था की अवधारणा के चलते इसे राक्षसीय बर्ताव और अलौकिक ताकतों से जोड़कर देखा जाता है, जिसके कारण अक्सर बहुत से मामलों में इलाज नहीं मिल पाता। इसके इलाज में साइकोसोशल थेरेपी और दवाएं शामिल हैं। मनोविकार नाशक दवाइयों का उपयोग इसके इलाज में किया जाता हैं। जल्द इलाज शुरु करने पर बेहतर परिणाम मिलते हैं और विकलांगता की आशंका भी कम होती है।