December 23, 2024

छत्तीसगढ़ में किताब घोटाला: शिक्षा विभाग की बड़ी लापरवाही उजागर

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रायपुर – छत्तीसगढ़ में स्कूल की किताबों का मामला गरमा गया है। पूर्व कांग्रेस विधायक विकास उपाध्याय ने आरोप लगाया है कि राज्य के सरकारी स्कूलों के लिए छपी किताबें रायपुर के एक कबाड़खाने में पड़ी हुई हैं। मामला सामने आने के बाद राज्य सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं। विकास उपाध्याय ने बताया कि ये किताबें सर्व शिक्षा अभियान और छत्तीसगढ़ टेक्स्टबुक कॉर्पोरेशन के माध्यम से छापी गई थीं

इन किताबों को कक्षा पहली से दसवीं तक के सरकारी स्कूलों के बच्चों में मुफ्त में बांटा जाना था। उपाध्याय ने इसे ‘किताब घोटाला’ करार देते हुए कहा कि एक तरफ छत्तीसगढ़ में बच्चे पढ़ाई के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वहीं, उनके लिए बनी किताबें कौड़ियों के भाव कबाड़ में बेची जा रही हैं। उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने निजी एजेंसियों के माध्यम से आवश्यकता से अधिक किताबें छपवाई हैं, जिन्होंने करोड़ों रुपये कमाए हैं। यह करदाताओं के पैसे की लूट है। वहीं, सरकार ने मामले की जांच के लिए IAS अधिकारी राजेंद्र कटारा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। राजेंद्र कटारा छत्तीसगढ़ टेक्स्टबुक कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक हैं। समिति में छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग के अतिरिक्त संचालक डॉ. योगेश शिवहरे, रायपुर शिक्षा संभाग के संयुक्त संचालक राकेश पांडे, छत्तीसगढ़ टेक्स्टबुक कॉर्पोरेशन के महाप्रबंधक प्रेम प्रकाश शर्मा और रायपुर कलेक्टर द्वारा नामित जिला प्रशासन के अधिकारी शामिल हैं।

इधर रायपुर के सिलियारी स्थित रियल बोर्ड पेपर मिल में लाखों स्कूल की किताबें रद्दी के भाव में बेची जा रही हैं। ये किताबें सरकारी दावों के विपरीत, छात्रों को मुफ्त में वितरण के लिए खरीदी गई थीं, लेकिन अब कबाड़ में फेंकी जा रही हैं। वही पूर्व विधायक विकास ने रायपुर के बिंदा सोनकर स्कूल का दौरा किया और पाया कि बच्चों के पास किताबें नहीं हैं। सरकारी दावे कि कक्षा 1 से 10 तक मुफ्त किताबें दी जा रही हैं, पूरी तरह से गलत हैं। बच्चों को किताबें न मिल पाने के कारण, वे फोटो कॉपी करके पढ़ाई कर रहे हैं। कई छात्रों और उनके माता-पिता ने बताया कि सत्र का आधा हिस्सा समाप्त हो चुका है, और फिर भी उन्हें किताबें नहीं मिली हैं।

बड़े शहर में यह हाल है, तो ग्रामीण इलाकों और आदिवासी क्षेत्रों में क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। सरकार की इस लापरवाही और भ्रष्टाचार पर गंभीर सवाल उठते हैं।

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