CM विष्णुदेव साय ने नक्सलियों को दिया आक्रामक जवाब, बोले- हिंसा छोड़ें नहीं तो बंदूक की भाषा का जवाब आता है
CM Vishnu Deo Sai: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा कि नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़ें नहीं तो बंदूक की भाषा का जवाब देना सरकार को आता है। बस्तर प्रवास पर पहुंचे मुख्यमंत्री ने सुकमा में पत्रकारों से चर्चा के दौरान नक्सली हिंसा का आक्रामक जवाब दिया।
सुकमा। CM Vishnu Deo Sai: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा कि नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़ें नहीं तो बंदूक की भाषा का जवाब देना सरकार को आता है। बस्तर प्रवास पर पहुंचे मुख्यमंत्री ने सुकमा में पत्रकारों से चर्चा के दौरान नक्सली हिंसा का आक्रामक जवाब दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि नक्सलियों से वार्ता के संदर्भ में प्रदेश के गृहमंत्री विजय शर्मा पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा से जुड़ें और विकास में सहभागिता निभाए। प्रदेश में सरकार बनने के तीन माह के भीतर ही नक्सल प्रभावित गांव के ग्रामीणों को मुख्यधारा से जोड़ने ‘नियद नेल्ला नार’ योजना शुरू की है।
इससे नक्सली आतंक की वजह से पिछड़े हुए गांव में स्थापित किए गए विकास कैंप के आसपास के पांच किमी के क्षेत्र में आने वाले गांव में सड़क, पानी, बिजली, स्कूल, अस्पताल, आंगनबाड़ी जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने का कार्य सरकार कर रही है। प्रदेश में शांति और सुरक्षा के संकल्प के साथ सरकार काम कर रही है।
सशर्त वार्ता चाहते हैं नक्सली
इधर, नक्सलियों ने ईसाई और मुस्लिम हितों की रक्षा की मांग के साथ सरकार से सशर्त वार्ता की मांग रखी है। लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया के बीच भाकपा (माओ) की दंडकारण्य जोनल कमेटी की ओर से जारी बयान में प्रदेश के उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा के वार्ता प्रस्ताव पर प्रश्न खड़ा किया गया है।
नक्सलियों का दावा है कि किसानों, मजदूरों और महिलाओं, मध्यम वर्गीय लोगों, छोटे और मंझोले पूंजीपतियों, आदिवासियों, दलितों, धामिक अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों और ईसाइयों के हितों को छोड़कर उनका कोई हित नहीं है। कई अन्य मांगों के साथ सरकार को वार्ता के लिए अनुकूल वातावरण बनाने की बात भी बयान में जारी की गई है।
वार्ता के लिए कोई बड़ी शर्त नहीं होने का दावा करते हुए प्रवक्ता ने कहा कि सुरक्षा बलों को छह माह के लिए कैंपों तक सीमित रखा जाए, नए कैंप स्थापित करने की प्रक्रिया बंद की जाए। सरकार की तरफ से पहले ही सशर्त वार्ता को अस्वीकृत किया जाता रहा है।