कोरोना महामारी से 30,000 बच्चे प्रभावित, सु्प्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर
नई दिल्ली| देश में कोरोना की दूसरी लहर का कहर अभी जारी है. वहीं कोरोना की इस लहर का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ा है. अप्रैल 2020 से लेकर पिछले हफ्ते तक आई रिपोर्ट के अनुसार लगभग 30,000 से अधिक बच्चे इस महामारी से प्रभावित हैं. इनमें से कुछ अनाथ हो गए या कुछ ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया. राष्ट्रीय बालअधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने इसको लेकर उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर किया है. ये कोविड-19 महामारी के दौरान प्रभावित बच्चों की स्थिति पर राज्यों द्वारा प्रदान किया गया अब तक का सबसे व्यापक अनुमान है.
आंकड़े संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा एनसीपीसीआर की वेबसाइट “बाल स्वराज” पर अपलोड किए गए थे. आयोग ने अदालत के समक्ष दायर एक हलफनामे में एक डिस्क्लेमर जोड़ा जिसमें कहा गया है कि माता-पिता की मृत्यु का कारण जरूरी नहीं कोरोना ही हो कुछ और भी हो सकता है. रविवार को अधिवक्ता स्वरूपमा चतुर्वेदी के माध्यम से दायर एनसीपीसीआर के हलफनामे में कहा गया है, “आयोग अपलोड की गई जानकारी के आधार पर 1 अप्रैल, 2020 से 5 जून, 2021 तक अपने माता या पिता या माता-पिता दोनों को खोने वाले बच्चों की संख्या प्रस्तुत कर रहा है.
क्या कहते हैं आंकडे़
आंकड़ों से पता चलता है कि महामारी के दौरान प्रभावित 30,071 बच्चों में से 3,621 ने माता-पिता दोनों को खो दिया, 26,176 की एक बड़ी संख्या ने माता-पिता को खो दिया, जबकि 274 को छोड़ दिया गया। प्रभावित बच्चों में 15,620 लड़के, 14,447 लड़कियां और चार ट्रांसजेंडर हैं.राज्यों में, महाराष्ट्र में सबसे अधिक 217 बच्चे अनाथ हुए और 6800 से अधिक बच्चों ने माता-पिता को खो दिया. मध्य प्रदेश और राजस्थान में क्रमशः 706 और 671 अनाथों की संख्या बहुत अधिक दर्ज की गई.
एनसीपीसीआर के हलफनामे में कोर्ट से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि वे बच्चों के नाम या जानकारी को सार्वजनिक डोमेन में साझा न करें या किसी ऐसे व्यक्ति,संस्था ,संगठन को प्रदान न करें जिससे इन बच्चों को पहचान कर इनके साथ शोषण न किया जा सके. ये बच्चे बाल मजदूरी या अवैध गोद लेने जैसीन घटनाओं का शिकार न हो सकें.