छत्तीसगढ़ के निजी क्षेत्रों को इंडस बेस्ट मेगा फूड पार्क की सौगात, राज्य में खुलेंगे 110 पार्क
रायपुर| केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गुरुवार को वर्चुअल कार्यक्रम में रायपुर जिले के तिल्दा ब्लाक स्थित बेमता-सरोरा में निजी क्षेत्र के इंडस बेस्ट मेगा फूड पार्क का शुभारंभ कर प्रदेश को एक नई सौगात दी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि यह अच्छी बात है कि निजी क्षेत्र ने यहां के किसानों के लिए फूड पार्क बनाने का फैसला किया है। हमारी सरकार भी राज्य में 110 फूड पार्क बनाने वाली है। इसके लिए जमीन भी चिंहित कर ली गई है। कार्यक्रम में केंद्रीय राज्यमंत्री खाद्य प्रसंस्करण रामेश्वर तेली, छत्तीसगढ़ के उद्योग मंत्री कवासी लखमा समेत कई अतिथि शामिल हुए।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस अवसर पर कहा, खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना सहित किसानों और वनवासियों के हित में निजी क्षेत्र द्वारा की जाने वाली हर पहल को राज्य सरकार हरसंभव मदद देगी। मुख्यमंत्री ने कहा, यह प्रसन्नता का विषय है कि निजी क्षेत्र के उद्यमियों ने छत्तीसगढ़ में साग-सब्जियों और फलों के प्रसंस्करण की संभावनाओं को परखा है और वे खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में अपनी भागीदारी तेजी से बढ़ा रहे हैं। बघेल ने कहा है कि राज्य सरकार का यह प्रयास है कि किसानों को उनके उत्पाद की सही कीमत मिल सके। इसके लिए उपज की सुरक्षा, भंडारण और प्रसंस्करण के लिए फूड पार्क की एक व्यापक श्रृंखला की स्थापना के प्रयास किए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में 110 फूड पार्क स्थापित करने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए जमीनों का चिन्हांकन किया जा चुका है। प्रदेश के प्रत्येक विकासखंड में कम से कम एक फूड पार्क की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है।
उन्होंने कहा है कि छत्तीसगढ़ में सभी तरह के फल और सब्जियों का भरपूर उत्पादन होता है। कई बार किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता। प्रदेश में वनोपजों का भी भरपूर उत्पादन होता है, लेकिन वनोपजों के संग्रहण और प्रसंस्करण की सुव्यवस्थित प्रणाली नहीं होने के कारण कई अवसरों पर संग्राहकों को समुचित आर्थिक लाभ नहीं मिल पाता है। श्री बघेल ने कहा है कि किसानों और वनवासियों को उनके उत्पादों का सही मूल्य दिलाने के लिए राज्य सरकार ने इन उत्पादों को क्षेत्रवार चिन्हित कर उनके प्रसंस्करण का कार्य शुरू किया है। वनोपजों को संग्रहित करने वाले स्व-सहायता समूहों के माध्यम से उनके प्रसंस्करण के लिए वन-धन केंद्रों की स्थापना की गई है।