जगन्नाथ रथयात्रा विशेष- 520 साल पुरानी परंपरा के साथ बस्तर में निकलती है जगन्नाथ की रथयात्रा, भारत में और कहीं भी नहीं देखने को मिलती प्रथा
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरे विश्व में मशहूर है। लेकिन छत्तीसगढ़ में रथयात्रा से जुड़ी 520 साल पुरानी परंपरा अपने आप में अनोखी है ।
संवाददाता – विजय पचौरी
जगदलपुर – भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरे विश्व में मशहूर है। लेकिन छत्तीसगढ़ में रथयात्रा से जुड़ी 520 साल पुरानी परंपरा अपने आप में अनोखी है । जो इतने सालों बाद भी वैसे की वैसी ही है। बस्तर के आदिवासी वन अंचल में रथयात्रा पर्व गोंचा तिहार में तुपकी गोली चालन नाम की एक विशिष्ट परंपरा है । बस्तर गोंचा अपने अनूठेपन के कारण ही प्रसिद्ध है। इसके बिना भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा अधूरी है।
क्या है खासियत ?
इस पर्व में आदिवासी एक प्रकार की बांस की बंदूक का इस्तेमाल राजा एवं भगवान के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए सलामी देने के तौर पर करते हैं । इस बांस की बंदूक को स्थानीय आदिवासी बोली में तुपकी कहते हैं । तुपकी दरअसल एयरगन जैसी बांस की पोली नली से बना उपकरण है ।
520 वर्ष पहले प्रारंभ की गई रथयात्रा में यह परंपरा निर्बाध रूप से आज भी जारी है । बस्तर के हजारों आदिवासी और गैर आदिवासी इकट्ठा होकर जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ , बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को रथ में चढ़ाकर गोल बाजार की परिक्रमा करते हैं। जब रथ परिक्रमा करता है तब लोग तुपकी से भगवान को सलामी देते हैं । बस्तर के अलावा भारत में ये प्रथा कहीं और प्रचालित नहीं है । बांस से बनी तुपकी बंदूक की आवाज़ यात्रा के आनंद को दोगुना कर देती है । ग्रामीण इसे तुपकी और इसमें चलने वाली गोली को पेग कहते हैं।
बस्तर के रियासत कालीन परंपराओं के अनुसार विधि विधान से 360 आरण्यक ब्राह्मण समाज के पंडित इस प्रथा को संपन्न कराते हैं । यह सिलसिला 10 दिनों तक जारी रहता है । बस्तर अंचल के ग्रामीण जंगल में जाकर बांस लाते हैं और तुपकी बनाते है । यहां के स्थानीय लोगों के लिए तुपकी जहां एक ओर भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए विशिष्ट है वहीं इससे इन्हें थोड़ी आमदनी भी हो जाती है।
जगन्नाथ रथयात्रा विशेष- 520 साल पुरानी परंपरा के साथ बस्तर में निकलती है जगन्नाथ की रथयात्रा, भारत में और कहीं भी नहीं देखने को मिलती प्रथा भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरे विश्व में मशहूर है। लेकिन छत्तीसगढ़ में रथयात्रा से जुड़ी 520 साल पुरानी परंपरा अपने आप में अनोखी है । जो इतने सालों बाद भी वैसे की वैसी ही है। बस्तर के आदिवासी वन अंचल में रथयात्रा पर्व गोंचा तिहार में तुपकी गोली चालन नाम की एक विशिष्ट परंपरा है । बस्तर गोंचा अपने अनूठेपन के कारण ही प्रसिद्ध है। इसके बिना भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा अधूरी है।
क्या है खासियत ?
इस पर्व में आदिवासी एक प्रकार की बांस की बंदूक का इस्तेमाल राजा एवं भगवान के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए सलामी देने के तौर पर करते हैं । इस बांस की बंदूक को स्थानीय आदिवासी बोली में तुपकी कहते हैं । तुपकी दरअसल एयरगन जैसी बांस की पोली नली से बना उपकरण है । 520 वर्ष पहले प्रारंभ की गई रथयात्रा में यह परंपरा निर्बाध रूप से आज भी जारी है
बस्तर के हजारों आदिवासी और गैर आदिवासी इकट्ठा होकर जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ , बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को रथ में चढ़ाकर गोल बाजार की परिक्रमा करते हैं। जब रथ परिक्रमा करता है तब लोग तुपकी से भगवान को सलामी देते हैं । बस्तर के अलावा भारत में ये प्रथा कहीं और प्रचालित नहीं है । बांस से बनी तुपकी बंदूक की आवाज़ यात्रा के आनंद को दोगुना कर देती है । ग्रामीण इसे तुपकी और इसमें चलने वाली गोली को पेग कहते हैं।
बस्तर के रियासत कालीन परंपराओं के अनुसार विधि विधान से 360 आरण्यक ब्राह्मण समाज के पंडित इस प्रथा को संपन्न कराते हैं । यह सिलसिला 10 दिनों तक जारी रहता है । बस्तर अंचल के ग्रामीण जंगल में जाकर बांस लाते हैं और तुपकी बनाते है । यहां के स्थानीय लोगों के लिए तुपकी जहां एक ओर भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए विशिष्ट है वहीं इससे इन्हें थोड़ी आमदनी भी हो जाती है।