VIDEO: नक्सलवाद क्या है? आखिर इन्होंने बंदूक क्यों उठाई? जानिए बंदूक उठाने के बाद जंगल की कहानी… आत्मसमर्पण नक्सलियों की जुबानी
संवाददाता : विजय पचौरी
छत्तीसगढ़ दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा जिसे नक्सलियों की राजधानी मानी जाती है नक्सलियों ने सबसे ज्यादा अपना साम्राज्य दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा में ही फैला रखा है 30 दशक पहले बाहर के नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में प्रवेश करना शुरू किया तब यह मध्य प्रदेश हुआ करता था क्योंकि यहां उनके सुरक्षित रहने के लिए बस्तर के जंगल काफी सुरक्षित थे।
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इस इलाके में 30 साल पहले विकास नाम की कोई चीज भी नहीं थी ग्रामीण भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसा करते थे धीरे-धीरे नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के अंदरुनी इलाकों में अपने पैर पसारने शुरू किए नक्सलियों ने ग्रामीणों को सरकार और पुलिस के खिलाफ बरगलाना शुरू किया क्योंकि यह वैसे इलाके हैं जहां कोई भी नहीं जाया करता था और नक्सलियों के लिए यह इलाका सुरक्षित था नक्सली गांव में धीरे-धीरे अपनी सरकार और हुकूमत चलाने लगे ग्रामीणों को जल जंगल जमीन और उनके हितों की बात करके उनका ब्रेनवाश करने लगे बस्तर के भोले-भाले ग्रामीण भी इनकी बातों में आ गए और उनका साथ दिया बंदूक उठाई धीरे धीरे नक्सलियों का सैलाब बढ़ता ही गया।
नक्सलियों ने कई बड़ी घटनाओं को अंजाम भी दिया नक्सलियों ने जवानों के कई हथियार भी लूटे हैं जिससे उनकी आबादी में इजाफा हुआ और इनकी संख्या बढ़ती गई नक्सली इन इलाकों में अपनी सरकार और हुकूमत चलाना शुरू किया चली भी लेकिन धीरे-धीरे अब इन इलाकों से भटके हुए लोगों को समझ में आ चुका है कि नक्सलवाद एक खोखली विचारधारा है यही कारण है कि नक्सली अब लगातार है सरकार की समर्पण योजना का लाभ लेते हुए आत्मसमर्पण कर रहे हैं दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा जहां माओवादियों की संख्या बहुत ज्यादा थी धीरे-धीरे इन इलाकों से नक्सलवाद की कमर टूट रही है जंगल में कभी काली वर्दी हाथ में ak-47 लेकर जवानों की तलाश करने वाले नक्सली समर्पण करके पुलिस की नौकरी कर रहे हैं।
आज भी उनके शरीर में वर्दी है और हाथ में एके-47 अब जंगल जब निकलते हैं तो इन्हें उन लोगों को ढूंढना पड़ता है जिन्होंने इनकी जिंदगी बर्बाद की थी इससे पुलिस को फायदे भी मिल रहे हैं क्योंकि समर्पित नक्सली नक्सल गतिविधियों की अहम जानकारी रखते हैं उन्हें मालूम है नक्सली कहां छुपते हैं कैसे रहते हैं इससे पुलिस को फायदे भी मिल रहे हैं जगदलपुर बस्तर से 100 किलोमीटर दूर दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा का सफर आज हम कर रहे हैं वहां पहुंचकर जानेंगे कि माओवाद क्या है?
क्यों नक्सली बने? नक्सली बनने से लेकर समर्पण तक का सफर तो हमारा सफर शुरू होता है यहां से जगदलपुर से दंतेवाड़ा जाने के रास्ते में कई जंगल पढ़ते हैं। जहां नक्सलियों की हुकूमत आज चल रही है उस इलाके से जाना भी एक चुनौतीपूर्ण काम होता है लेकिन हम आपको आज वह खबर वह तस्वीर भी दिखाएंगे जहां दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा बदल रहा है।
दक्षिण बस्तर पहुंचने के बाद हमारी मुलाकात उन लोगों से हुई जो कभी जंगल जंगल घूम के जवानों की तलाश किया करते थे आज समर्पण करने के बाद नक्सलियों की तलाश में रोजाना निकल जाते हैं सबसे पहले हमारी मुलाकात हुई छन्नू से जिन्होंने बताया कि मेरे गांव में नक्सली आना-जाना करते थे और बचपन से ही वह मुझे अपने साथ ले गए और नक्सल गतिविधियों की पूरी ट्रेनिंग जानकारी भी दी 9 साल तक नक्सली संगठन में रहे उन 9 सालों में उन्होंने क्या कुछ देखा यह भी हम आपको बताएंगे छन्नू का कहना है कि रात दिन जंगल में भटकते रहे भूखे प्यासे सोना पानी तक के लिए तरस जाना यह हमारा जीवन था उन्होंने कई बड़ी घटनाओं में नक्सलियों का साथ दिया रानी बोदली जहां 55 जवान शहीद हुए थे उस घटना में भी शामिल थे रानी बोदली कांड का पूरी कहानी उन्हें बताई है कि उस हमले में सीआरपीएफ के 55 जवान शहीद हुए थे और हमने 32 हथियार भी लूटे थे मगर बाद में उन्हें समझ में आया कि नक्सलवाद एक खोखली विचारधारा रह गई है क्योंकि यहां मौत के सिवा और कुछ भी नहीं है उन्होंने समर्पण किया और आज को पुलिस की नौकरी कर रहे हैं
संजय अब हमारी मुलाकात होती है संजय पोटम से जिनके कंधे पर आज तीन स्टार लगे हुए हैं यह तीन स्टार कैसे लगे यह भी बताएंगे संजय नक्सली कमांडर थे और ak-47 लेकर जंगल में हुकूमत चलाया करते थे और बड़ी बड़ी घटनाओं को अंजाम भी दिया धीरे-धीरे उन्हें पता चला कि आंध्र प्रदेश तेलंगाना और बाहर के नक्सली बस्तर में राज करना चाह रहे हैं उनके ऊपर सरकार ने आठ लाख रुपये का इनाम भी घोषित कर रखा था उन्होंने समर्पण किया और मुख्यधारा में जुड़े मुख्यधारा में जुड़ने के बाद इन इलाकों में अच्छी खासी नक्सलवाद के विरुद्ध कामयाबी पुलिस को मिली समर्पण करने के बाद उन्हें गोपनीय सैनिक के रूप में रखा गया था धीरे-धीरे उन्होंने ऐसा काम किया कि लगातार प्रमोशन मिलता गया और वह आज तीन स्टार लगाकर TI पद पर पहुंच चुके हैं उन्होंने बताया है कि नक्सलवाद चीनी माओवाद के नेतृत्व में बस्तर में क्रांति लाना चाह रहे थे और लाई भी नक्सलवाद एक विचारधारा बनकर रह गई है बाहर के नक्सली अपने बच्चों को महंगे स्कूल में पढ़ाया करते हैं और bastar के जो आदिवासी हैं अपने संगठन में जोड़ कर उनके लिए कुछ भी नहीं करते यदि कोई शादी भी करना चाहता है तो पहले उनकी नसबंदी करा दी जाती है ताकि युद्ध के दौरान कोई परेशानी ना हो
दंतेवाड़ा SP अभिषेक पल्लव ने बताया है कि नक्सलियों की खोपड़ी विचारधारा को यहां के नक्सली समझ चुके हैं यही कारण है कि लगातार नक्सली समर्पण कर रहे हैं 10 माह पहले घर वापसी अभियान की शुरुआत की गई थी जिसमें 96 नर्सरी सही कुल 363 नक्सली अब तक समर्पण कर चुके हैं आने वाले समय में भी नक्सली लगातार लाल आतंक का रास्ता छोड़ मुख्यधारा में प्रवेश करेंगे।
बाइट 01 समर्पित नक्सली छन्नू
बाइट 02 नक्सली कमांडर संजय पोटाम
बाइट 03 पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव